नि:संदेह बीमा व्यवसाय विशेषतया, जीवन बीमा निगम से देश की अर्थ व्यवस्था को मजबूती मिलती है।फ़िलहाल, प्रचार यह किया जाता है कि यह कल्याणकारी योजनायें है और बीमा कराने वाले तथा उसके परिवार कीआर्थिक सुरक्षा की गारंटी देती हैं। किन्तु हम - आप रेडयो, टी वी पर मीठी मीठी व सपनीली योजनाओं के बारे मेंतो प्रतिदिन अनेक बार सुनते व देखते हैं, इन योजनाओं के क्रियान्वयन या इनके वास्तविक लाभान्वितों का कोईआंकड़ा हमें कभी नहीं बताया जाता।
प्राय: बीमा एजेंट आपको बीमे का प्रस्ताव देते हुए रिस्क कवर के साथ केवल लुभावना बचत , उंचा फायदा इत्यादिकी बातें बताता है। यह कदापि नहीं बताता कि यदि कुछ किस्तें जमा करने के बाद आप आगे जमा करने में समर्थनहीं रहे तो आपका मूल धन भी नहीं मिलेगा। या यदि आय का नियमित श्रोत न होने के कारण आप इस सम्बन्धमें शंका या जिज्ञासा करते भी हैं तो वह बताएगा कि बस आपको दो साल जमा करना है उसके बाद यदि आप नहींजमा कर पाएंगे तो कभी भी पालिसी सरेंडर कर सकते हैं और आपको कुछ ब्याज, फायदा, बोनस के साथ अपनाधन वापस मिल जायेगा। अगर आपने दो साल तक किश्त जमा किया है और तीसरे साल से जमा करने मेंअसमर्थ है और चाहते है कि आपका मूल ही वापस मिल जाय तब वही एजेंट बताएगा कि आपको कम से कम पांचसाल तक किश्त जमा करनी है नहीं तो आपको अपना मूल धन नहीं मिल पायेगा. इस प्रकार यह तथाकथितजनहितकारी व्यवसाय उसी को अधिक ठगता है जो अधिक गरीब है ।
बीमा करते समय एजेंट की मीठी मौखिक बातों पर ही आपको भरोसा करना होता है उस समय बीमा की शर्तें यापालिसी का सैम्पुल उसके पास नहीं होता। किश्त जमा करने के एक माह बाद आपको पालिसी मिलती है तो आपउसकी बारीक लिखावाटों पर आँख गड़ाने का जहमत नहीं उठाना चाहते और उसी बात पर आश्वस्त रहते है जोएजेंट ने समझाया था. कृपया ऐसे लोगों से संपर्क करने की कोशिश करें जो आमदनी न होने के कारण अपनी बीमायोजना को बंद करके अपना जमा किया हुआ धन वापस लिया हो या लेना चाहते हों। उन परिवारों से भी संपर्ककरने की कोशिश करें जिन्हें बीमित की मृत्यु होने के कारण बीमा धन मिला हो या मिलने कि उम्मीद हो।
केवल वही लोग बीमा में धन लगाकर पश्चात्ताप नहीं करते हैं जो प्रचुर व नियमित आमदनी वाले है और अपनेजीवनकाल में ही बीमे की पूरी अवधि तक किश्त जमा करके बीमा परिपक्व होने पर किसी तरह अपना धन लाभसहित वापस पा लेते हैं । "किसी तरह" शब्द का प्रयोग इसलिए कर रहा हूँ कि, बीमा एजेंट व बीमा निगम केअधिकारी हर संभव कोशिश करते है कि आप बीमा परिपक्व होने के बाद भी उस पैसे से कोई दूसरा बड़ा बीमा करालें और आपका पैसा घूम फिर कर बीमा निगम के पास ही रहे ; आप सिर्फ सपने देखते रहें कि आपका धन बढ़करअब इतना ......... हो चुका है। आपके बाद आपके वारिस व संबंधी आपसी विवाद न होने पर या विवाद समाप्त होनेपर जब सारी क़ानूनी प्रक्रियाएं पूरी कर लेंगे तब न निगम धन लौटाएगा !!!!!
सावधानी: अत:, बीमा कराते समय आप जल्दबाजी न करें । एजेंट से कहें कि पहले वह आपको पालिसी यास्कीम के शर्तो की एक नमूना प्रति दे। यदि ऐसा नहीं हो सका तो पालिसी मिलने के बाद आप तत्काल पालिसी कोपूरी तरह पढ़ें , बार बार पढ़ें और समझें ; इसमें बिल्कुल आलस्य न करें। यदि आपको लगता है कि पालिसी कीशर्तें वह नहीं हैं जो एजेंट ने बताया था तो तुरंत आपत्ति करें और अपना धन वापस मांगें । होता यह है कि बरसोंबाद जब समस्या आती है तब आप पालिसी पढ़ते हैं और पाते है कि आप वह सारी शर्तें मौखिक प्रलोभन के आधारपर स्वीकार कर लिए थे जो अपने स्वतंत्र विवेक के आधार पर कतई स्वीकार नहीं करते।
गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010
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bahut hi achhi jaankaari di hai aapne... thanks...
जवाब देंहटाएंhmm interesting post. Word verification please hataa lijiye, tabhi devnagari mein tipiya sakenge
जवाब देंहटाएंA good effort to provide legal awareness.
जवाब देंहटाएंआपने बहुत सही बात कही है जी
जवाब देंहटाएंज्यादातर एजेंट तो झूठ-सच बोलकर ही पालिसियां बेचते हैं और कम आमदनी वाले लोगों का पैसा फंस जाता है
मैं भुक्तभोगी हूं
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nice information,useful advice
जवाब देंहटाएंThanks to all of you for responding!Now word verification has been removed. Links of two other blogs of mine namely, "Legal Articles" and "Vidhiyog school of Legal Philosophy and Metaphysics" have been added on side bar.
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी आपकी रचना .. इस नए चिट्ठे के साथ हिन्दी चिट्ठा जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लाग लेखन के लिये स्वागत और बधाई । अन्य ब्लागों को भी पढ़ें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देने का कष्ट करें
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