शनिवार, 13 फ़रवरी 2010
समता का अधिकार सकारात्मक है, नकारात्मक नहीं
हमारी प्रशासनिक व्यवस्था में एक बड़ा दोष यह है कि बहुत बार क़ानून की अनदेखी या गलत व्याख्या करके कुछ लोगों को अनुचित लाभ दे दिया जाता है और जो लोग इस व्यवस्था से व्यावहारिक तालमेल नहीं बैठा पाते वे अपने साथ अन्याय हुआ महसूस करते हैं। उनका ऐसा सोचना स्वाभाविक भी है। परन्तु इस तरह की समस्याओं में उन्हें न्यायालय से कोई राहत नहीं मिल पाती। इस सम्बन्ध में न्यायिक दृष्टिकोण यह है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद १४ द्वारा प्रदत्त समता का अधिकार सकारात्मक है, नकारात्मक नहीं । अर्थात कानून के समक्ष सभी समान हैं, गैर कानूनी कार्य के सम्बन्ध में समानता के अधिकार का दावा नहीं किया जा सकता। आप यह नहीं कह सकते कि अमुक मामले में पुलिस ने कोई कार्यवाही नहीं किया तो आपके मामले में भी न करे; या अमुक व्यक्ति को निर्धारित मानकों के पूरा किये बिना भी नौकरी दी गयी या कोई लाभ दिया गया तो आपको भी बिना निर्धारित मानक पूरा किये वही लाभ दिया जाय । इस सम्बन्ध में उच्चतम न्यायलय की नजीरें देखने के लिए इसी लेखक का ब्लॉग "लीगल आर्टिकल्स " में सन्देश संख्या ११० देखें। स्टेट ऑफ़ बिहार बनाम कामेश्वर प्रसाद सिंह (ए आइ आर २००० सु.को.२३०६) उच्चतम न्यायलय के निर्णयों में से एक मुख्य निर्णय है।
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जंगलमे मोर नाचा किसी ने ना देखा, हम तो थोडी सी पीकर जरा झूमे, हाय रे सबने देखा।
जवाब देंहटाएंमै अनजाने मे पाप कर्म करता हूं तो मै खुद को माफ क्रर सकता हूं। लेकिन परिणाम जानकर भी मै वही वही गलती फिर-फिर करता हूं तो मेरे जैसे पागल का मै क्या करू।